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सफर - मौत से मौत तक….(ep-39)








एडवोकेट समीर हाउस……

सुबह ग्यारह बजे तक सारे लोग वापस घर आ गए थे जो शमशान गए हुए थे। घर आकर भी समीर को बस आग की लपटें याद आ रही थी, और याद आ रहा था वो बचपन
……समीर बेसुध सा बैठा था, आधे घंटे पहले ही पिता को अग्नि देकर आया था, वो आग की लपटें अभी भी उसकी नजर के सामने लहर खा रही थी। वो शरीर राख हो चुका था जिसको बचपन मे घोड़ी बनाया, जिसकी पैरों में झूला झूले, जहाँ वो जाते थे अपने गोदी में ही रखते थे,  परवरिश की और पढ़ाया लिखाया था। एक रिक्शे वाले का बेटा आज वकील है तो सिर्फ उनकी वजह से।
   समीर को एहसास था कि उसने क्या खोया है लेकिन कहते है ना कुछ बातों का एहसास सही वक्त पर ना हो तो बाद में उन एहसासों का होना ना होना दोनो एक समान है।

नंदू ने आजकल ऑफिस जाना बंद कर रखा था। सुबह से शाम तक बस घर मे ही पड़ा रहता था। फिलहाल सारे रिश्तेदार भी यही थे, रिश्तेदार ने नाम पर समीर की दो बुआ और एक फूफाजी आये थे। और इशानी की माँ स्नेहा भी आजकल यही थी।

दूसरी तरफ पुष्पाकली हॉस्पिटल में बैठी थी, उसके लड़के ल ऑपरेशन चल रहा था। इशानी के दिये हुए पैसे हाथ मे पकड़े हुए पुष्पाकली सोच रही थी कि आखिर इन लोगो मे पैसे लेने से मना क्यो कर दिया, ऐसा क्यो कहा कि आपके बच्चे के ऑपरेशन की फीस कल सुबह ही भर दी गयी । आखिर कौन भर सकता है फीस….ये बात तो मैंने इशानी मैडम को बताई थी। ना समीर को पता था ना बड़े मालिक को….

बस मन में एक सवाल था जिसका जवाब जानने के लिए बैचेन पुष्पाकली दोबारा फीस काउंटर की तरफ चली गयी।
काउंटर में भीड़ थी, और लंबी लाइन, पुष्पाकली लाइन में लग गयी ताकि सिस्टम में रहकर तसल्ली से सवाल जवाब कर सके। बहुत मुश्किल से उसका नम्बर आया, करीब बीस मिनट लाइन में खड़े होने के बाद।

"सुनो….एक बात पूछनी है" पुष्पाकली ने कहा।

फीस काउंटर वाली मैडम ने तीसरे नंबर पर बने रिसेप्शन काउंटर की तरफ इशारा करते हुए कहा - "वहां पूछिये, ये फीस काउंटर है"

"जी आपसे ही पूछना है मैंने…." पुष्पाकली ने कहा।

"अरे आँटी हटिये लाइन से, ये फीस काउंटर है, पूछताछ केंद्र वो तीसरे नम्बर पर है, जो भी पूछना है वहां पूछ लीजिये" फीस काउंटर की मैडम ने कहा।

पुष्पाकली चुपचाप तीन नम्बर वालें काउंटर पर गयी और लाइन पर लग गयी। यहां उतनी भीड़ नही थी लेकिन चार पांच लोग अभी पुष्पाकली से आगे थे।
करीब आठ दस मिनट में ही पुष्पाकली का नम्बर आ गया। लेकिन किसी लाइन में खड़े रहकर अपने बारी का इंतजार करने में  एक एक मिनट भारी लगता है, बड़ी मुश्किल से पुष्पाकली का एक बार फिर नम्बर आया।

"मैंने एक सवाल पूछना था" पुष्पाकली ने कहा।

"जी पूछिये" रिसेप्शनिष्ट ने कहा।

"मेरे बच्चे का ऑपरेशन था, मैं खुद पैसे का इंतजाम करके कल रात को हॉस्पिटल आयी, तब सारे काउंटर बन्द थे । सुबह आठ बजे सारे काउंटर खुले तो मैंने फीस भरने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने फीस नही लिया, कह दिया कि फीस तो कोई और भरके चला गया।" पुष्पाकली ने शिकायत उस मैडम के आगे रख दिया।

"ये तो अच्छी बात है, इसमे परेशान होने वाली क्या बात है। " रिसेप्शनिष्ट ने कहा।

"लेकिन मैं उस जमा करने वाले का नाम जानना चाहती हूं, मुझे पता तो चलना चाहिए कि फीस जमा किसने किया था"  पुष्पाकली बोली।

"वो तो 7 नम्बर काउंटर पर ही पता चलेगा, आप वही जाकर पूछो" रिसेप्शनिष्ट ने कहा।

"7 नम्बर वाले तो बोल रहे थे कि 3 नम्बर पर जाओ" पुष्पाकली बोली।

"मैं थोड़ी बताऊंगी ये बताना उनका काम है" रिसेप्शनिष्ट ने कहा।

"आपको बताने में क्या हो जाएगा….आप ही बता दो, वो मैडम तो नॉट गिनने में बिजी रहती है" पुष्पाकली ने कहा।

"आँटी एक बात बताओ….जो काउंटर फीस लेने का काम करता है ये बात उसे पता होगी कि मुझे….अब मैं थोड़ी देखूंगी यहां से की कब कौन फीस देकर जा रहा है और कौन नही, प्लीज मेरा समय मत बर्बाद करो " रिसेप्शनिष्ट ने कहा।

"पहले जब वहाँ गयी तो उनका समय बर्बाद, जब यहां आयी तो आपका समय बर्बाद, और आधा घंटा वहां लाइन पर लगके उन्होंने इधर भेजा आधा घंटा यहां लाइन पर लगी रही अपने बारी के इंतजार में….मेरे समय का क्या….मेरा समय जितना मर्जी बर्बाद कर लो लेकिन आपके समय की कीमत है" पुष्पाकली गुस्सा करते हुए बोली।

अब रिसेप्शन वाली मैडम को कुछ कहना नही आया। अगर ज्यादा बोलेगी तो हंगामा होगा और हंगामा हुआ तो कल फिर सुपरवाईजर उसे फिफ़्त फ्लोर वलें काउंटर पर कार्ड बांटने का काम सौंप देगा जैसा पिछले हफ्ते किया था। इसी डर से उसने शिल्पा यानी फीश काउंटर वाली लड़की को फोन किया। अभी घंटी जा रही थी,
- "आप रुको एक मिनट…मैं पता करती हूँ." रिसेप्शनिष्ट ने आँटी को रोकते हुए कहा।

"क्या हुआ" शिल्पा की आवाज आई।
"अरे ये आँटी को यहाँ क्यो भेज दिया" इंदु ने कहा।
"अरे यार , वो सुबह से दो बार आ चुकी है, लेकिन उसे बता नही सकते, क्योकि जिन अंकल ने जमा किया था उन्होंने बताने से मना किया था" शिल्पा बोली।
"ये आँटी हेडक्वार्टर चली गयी तो वो अंकल नही आएंगे तेरी नौकरी बचाने, तू फालतू के पंगे में मत पड़, बस नाम बता दे उसका, वो उनका आपस का मामला है अपने आप सुलझाएंगे ,हमने अपना काम अपनी तरफ से क्लीयर रखना है बस" इंदु ने कहा।

"नंदकिशोर नाम है, और हिंदी में नंदू करके सिग्नेचर किये थे उन्होंने" शिल्पा बोली।

"ठीक है" इंदु ने कहा और फोन काट दिया।

"आँटी जी….कोई नंदू नाम के आदमी ने कल सुबह आकर आपकी फीस जमा की थी, कृपा होगी कि आप ये बात किसी को मत बताना, नंदू ने तो हमे आपको बताने से भी मना किया था। आप ज्यादा परेशान हो रहे थे इसलिए हमने आपको बता दिया। लेकिन आप ये बात किसी को मत बताना" इंदु ने आँटी से कहा।

इतना सुनते ही पुष्पाकली के हाथ मे पैसे का बैग और दवाई की पुड़िया भी हाथ से नीचे छूट गयी,उसके पैरों तले जमीन ही खिसक गई।


*****


उधर समीर और इशानी भी जब अकेले होते तो एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराते थे , लेकिन सलबके सामने अलग ही कहानी सुनाते थे। अभी दस बारह दिन तक समीर और इशानी को अलग अलग कमरे में रहने को कहा गया, ये भी एक रिवाज ही था कि जब तक तेरहवीं नही होती कोई स्त्री समीर को स्पर्श नही करेगी, खाना अलग पकाकर दिया जाएगा, उसके बर्तनों में कोई नही खायेगा। सरला बुआ ने तो इतना परेशान किया था समीर को की अपने खाने के बर्तन भी खुद धोएगा,

आजकल समीर और इशानी की बात मेसेज में हो रही थी। क्योकी आमने सामने जब भी होते तो कोई ना कोई साथ होता था।

"देखा अंकल, दोनो कैसे पुष्पा वाली घटना सबसे छिपा रहे है, क्योकि उन्हें डर है, दोनो को अलग अलग डर सता रहा है, इशानी को ये डर है कि अगर पुष्पाकि कहानी सामने आई तो पुलिस का चलकर पड़ेगा, और पुलिस को देखते ही वो सब बक देगी। और समीर को ये डर था कि अगर पुष्पाकली की कहानी बीच मे लाएंगे तो मारने के बाद भी पापा बदनाम हो जाएंगे।"  यमराज ने नंदू अंकल से कहा।

"₹नंदू अंकल उस बारह दिन तक लगातार जलाए गए अमर ज्योत की तरफ देख रहे थे,  उन्होंने यमराज की बात पर बिना ध्यान दिये कहा- "ह्म्म्म"

यमराज ने नंदू की तरफ देखा और फिर नंदू की नजरों का पीछा करते हुए उस दीपक की तरफ देखते हुए कहा- "दीपक को क्यो घूर रहे हो आप….उसकी क्या गलती है"

"मैं भी यही सोच रहा हूँ कि इसकी आखिर गलती क्या है कोई खुशी की बात हो तो इसे जला देते है, कोई गम हो तो इसे जला देते है, हर बार इसे ही जलाया जाएगा तो खुशी और दुख में फर्क क्या रह जाएगा" नंदू अंकल ने बहुत ही मासूमियत के साथ कहा।

"इसे जलाने का मतलब रुई को तेल में भीगाकर उसमे आग लगा देना तक सीमित रह गया है आज के जमाने मे….लेकिन इसके पिछे के रहस्य को शायद ही कोई जानता होगा।" यमराज बोला।

"तुम तो जानते हो ना" नंदू ने कहा।

"शायद……शायद जो मैं जानता हूँ वो सही है….ऐसा माना जाता है की दीपक रोशनी का प्रतीक है, जब भी जीवन मे कोई खुशी आती है तो इसे जलाकर इंसान ये प्राथना करते थे कि हे ईश्वर तू ही है हमे रास्ता दिखाने वाला, आगे भी हमारे राहों के अंधकार को दूर करके हमारे मार्ग को अंधकार मुक्त करते हुए खुशियों भरी रोशनी भर दो, ताकि हम रास्ता ना भटक पाए…… लेकिन आज के जमाने मे इसे जलाते हुए कोई कुछ प्रार्थना नही करता है, पंडित जी कहते  है दिया जलाओ, माचिस मिली तो ठीक नही तो इंसान अपने जेब से लाइटर निकाल कर सिगरेट की भांति सुलगा देता है और कहता है - "ये हवा भी अभी चलनी थी, बुझ ना जाईयो दीपक भाई"
उसके बाद पंडित जी की तरफ को देखकर इंसान मुस्कराता है और पंडित जी कहते है- "बस इस थाली में एक पीला वस्त्र और उसके बीच मे एक पांच सौ का नोट रख दो, और दो बार दिए के ऊपर घुमाकर ब्राह्मण को दान कर दो,
पंडित भी खुश, जजमान भी खुश,
पंडित खुश इसलिये क्योकि बिना अधिक मंत्र पड़े ही गुरु दक्षिणा मिल गयी, और जजमान इसलिये खुश क्योकि उसे ए सी में बैठने की आदत है, पंडित अच्छा था जिसने ज्यादा टाइम नही लगाया वरना उस हवन कुंड के बगल में आज गर्मी से बुरा हाल हो जाता। " यमराज बोलते गए और नंदू सुनता गया।

"फिर आगे???" नंदू अंकल ने कहा, क्योकि उन्होंने भी टाइम पास करना था। वैसे भी अब ये सब बातें नंदू अंकल के कोई काम की नही थी, ना वो किसी को बता सकता था ना इन सब बातो को याद रखकर भविष्य में उसे कोई लाभ था। लेकिन फिर भी अगर ज्ञान की बात सुनने को मिले तो मौका छोड़ना नही चाहिए, वैसे भी यमराज बाते इस तरीके से पेश कर रहा था कि सुनने वाले को मजा आ जाये।

"और….और जब कोई मरता है या अशुभ काम होता है तो पुराने जमाने के लोग दिया जलाते हुए ये प्रार्थना करते थे कि - "हे ईश्वर, मेरे जीवन मे जी विपदा आयी है, जो भी अंधकार हुआ है, इसकी वजह चाहे कोई भी है, लेकिन हमारा भरोसा हमेशा से तू ही रह है। इस अंधकार को मिटाकर हमारे जीवन मे रोशनी भरिये, और साथ ही उस आत्मा को शांति दीजिए जिसका जीवन काल आज समाप्त हो चुका है।.……लेकिन आज के जमाने में इतने लोग किसी के मरने में इकठ्ठे होते है सब जानते है कि किसी की मृत्यु के पश्चात एक दिया जलाया जाता है, जिसे मंदिर में नही रखते है। और तेरहवीं तक भगवान की पूजा नही की जायेगी….बस इसी बात को मध्यनजर रखते हुए एक दिया जला दिया जाता है, और दिया जलाते हुए कहा जाता है- " दिया बारह दिन तक जला रहना चाहिए, फिर तो एक बड़ा दिया रखो, बार बार तेल डालने के लिए कौन खड़ा रहेगा यहां पर"

नंदू को यमराज की बाते अब उटपटांग लगने लगी, यमराज कुछ ज्यादा ही तुलना करने लगा था पुराने लोगो और आज के लोगो मे,
"बस बस….समझ गया मैं…." नंदू अंकल ने कहा।

दोनो की चर्चा यही समाप्त हो गयी।

उधर इशानी ने आज फेसबुक में बहुत ही सैड स्टोरी पोस्ट की थी,

"#आई मिस यु पापाजी आर.आई.पी"
और साथ मे नंदू अंकल की फ़ोटो भी लगाई थी,

नंदू अंकल ने यमराज से पूछा- "ये आर आई पी क्या होता है?

"इसका मतलब भगवान आपकी आत्मा को शांति दे" यमराज ने जवाब दिया।

नंदू हंसते हुए बोला- "आज तो बहु ये भी सोच रही होगी काश कभी ससुरजी के साथ कोई सेल्फी भी ली होती तो वो फ़ोटो अपलोड करती, लोग देखते तो सोचते कितना प्यार करती है"

"देख नही रहे कितने कॉमेंट्स आ रहे है….हर कोई कॉमेंट्स करके सांत्वना दी रहा है और कह रहा है कि भगवान उसके परिवार को ये दुख सहने की शक्ति दे, और उनकी आत्मा को शांति….और आपकी बहु हर कॉमेंट का जवाब रोने वाला स्टीकर भेजकर दे रही है ।" यमराज बोला।

"दस लोगो के बीच मे रोने वाला सच्चा नही होता, हां मानता हूँ अर्थी उठते समय रोई थी ये, लेकिन जिसे असली दुख होता है वो अकेले में रोते है, लेकिन मेरी बहु तो बस जब दो लोग मिलने आ रहे तब बड़ी मेहनत से रो रही है, बिना दिल के इजाजत के आंखों से आंसू बहाने में भी बहुत मेहनत लगती है ना" नंदू बोला।

"तो आपके कहने का मतलब जो अमीर अकेले बैठे बैठे उदास हो जाता है, कभी कभी उसकी आंखें नम हो जाती है , क्या ये असली आंसू है जो समीर आपके लिए बहा रहा है" यमराज ने कहा।

यमराज के सवाल का जवाब देते हुए नंदू बोला - "हां, उसे तकलीफ है मेरे गुजरने का, वो भी आज उसी दर्द से गुजर रहा है जो मैं अपने बाबूजी के मौत के वक्त सह रहा था, फर्क बस यही है कि मैं बाबूजी के जीते जी उनके बीमारी को देखते हुए उन्हें खोने के डर से ही रोने लगता था। मैं उनके जीते जी भी उनके लिए रोया और उनके मरने के बाद भी, लेकिन मैं मरने के बाद ज्यादा अफसोस नही किया क्योकि उनकी जिंदगी से बेहतर थी उनकी मौत, कई बार उनकी तकलीफ देखकर अनजाने में मैं भी दुआ करता था कि हे भगवान या मेरे पिताजी को जिंदगी दे दीजिए या मौत, उनके इतने बुरे कर्म भी नही जो तू उन्हें इतनी बुरी सजा दे रहा है।
   लेकिन समीर को अफसोस है मेरी मौत का क्योकि मेरे मौत से बेहतर मेरी जिंदगी थी उसकी नजर में….और वैसे भी किसी को खोने के बाद ही तो एहसास होता है खोने का, उससे पहले तो बस कल्पना कर सकते है। कल्पना और एहसास में धरती आसमान का फर्क है।"


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उधर राजू और मन्वी भी हाल ही मैं नंदू वालें शहर में शिफ्ट हुए थे, क्योकि मन्वी का सरकारी स्कूल में नम्बर आ गया था। जिस वजह से उसे इस बड़े शहर के स्कूल में आना पड़ा था।

आज ही मन्वी ने फ़ेसबुक पर नंदू अंकल की फ़ोटो देखी तो वो सन्न रह गयी। पिछले एक हफ्ते से राजू बार बार मन्वी से कहता कि एक चक्कर नंदू के घर चलते है, लेकिन मन्वी सण्डे पर बात टालती रही, आज शनिवार था और कल नंदू अंकल के घर जाने की तैयारी चल रही थी, वो भी सरप्राइज देने का मन बनाया था दोनो ने। लेकिन मन्वी ने फेसबुक में ये पोस्ट देखी तो बहुत ज्यादा दुख हुआ उसे, और उसमे इतनी हीम्मत भी नही की पापा को ये बात बता सके….और अगर नही बताएगी तो कल उनके घर जाना पड़ेगा।
  खैर जाना तो पड़ेगा ही बताकर भी और नही बताकर भी…. मन्वी फोन हाथ मे लेकर पापा के कमरे में गयी और उदास नजर से पापा की तरफ देखने लगी।

"क्या हुआ बेटा" राजू ने उदास खड़ी मन्वी से पूछा।

कहानी जारी


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4 Comments

Khan sss

29-Nov-2021 07:41 PM

Good

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Fiza Tanvi

08-Oct-2021 05:11 PM

Good

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Niraj Pandey

07-Oct-2021 01:49 PM

बेहतरीन👌

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